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Maha Shivratri 2021: महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि, महत्व और व्रत कथा

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Vidya Gyan Desk: महाशिवरात्रि (Maha Shivratri 2021) का त्योहार इस बार 11 मार्च को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा- अर्चना की जाती है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती (Shiv Parvati Vivah) के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि (Maha Shivratri 2021) को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि (Maha Shivratri 2019)

हिंदू पुराणों में महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) के लिए कोई एक नहीं बल्कि कई वजहें बताई गई हैं। किसी कथा में महाशिवरात्रि को भगवान शिव के जन्म का दिन बताया गया है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी वजह से इस दिन शिवलिंग की खास पूजा की जाती है।

वहीं, दूसरी प्रचलित कथा के मुताबिक ब्रह्मा ने महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) के दिन ही शंकर भगवान का रुद्र रूप का अवतरण किया था। इन दोनों कथाओं से अलग कई स्थानों पर मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी।

महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त (Maha Shivratri Shubh Muhurat)

  • महाशिवरात्रि तिथि- 11 मार्च 2021
  • महानिशीथ काल – 11 मर्च रात 11 बजकर 44 मिनट से रात 12 बजकर 33 मिनट तक
  • निशीथ काल पूजा मुहूर्त : 11 मार्च देर रात 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक
  • अवधि-48 मिनट
  • महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त : 12 मार्च सुबह 6 बजकर 36 मिनट 6 सेकंड से दोपहर 3 बजकर 4 मिनट 32 सेकंड तक।
  • चतुर्दशी तिथि शुरू: 11 मार्च को दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से
  • चतुर्दशी तिथि समाप्त: 12 मार्च दोपहर 3 बजकर 3 मिनट

महाशिवरात्रि पूजा की सामग्री और विधि (Maha Shivratri​ Puja)

शिवपुराण के मुताबिक महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ की पूजा करते समय इन चीज़ों को जरूर शामिल करें।

  • शिव लिंग के अभिषेक के लिए दूध या पानी। इसमें कुछ बूंदे शहद की अवश्य मिलाएं।
  • अभिषेक के बाद शिवलिंग पर सिंदूर लगाएं।
  • सिंदूर लगाने के बाद धूप और दीपक जलाएं।
  • शिवलिंग पर बेल और पान के पत्ते चढ़ाएं।
  • आखिर में अनाज और फल चढ़ाएं।
  • पूजा संपन्न होने तक ‘ओम नम: शिवाय’ का जाप करते रहें।

महाशिवरात्रि व्रत नियम (Maha Shivratri Vrat)

भगवान शिव के व्रत के कोई सख्त नियम नही है। महाशिवरात्रि के व्रत को बेहद ही आसानी से कोई भी रख सकता है।

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में नहाकर भगवान शिव की विधिवत पूजा करें।
  • दिन में फलाहार, चाय, पानी आदि का सेवन करें।
  • शाम के समय भगवान शिव की पूजा अर्चना करें।
  • रात के समय सेंधा नमक के साथ बनें व्रत में खाए जाने वाला भोजन खाएं।
  • कुछ लोग शिवरात्रि के दिन सिर्फ मीठा ही खाते हैं।

महाशिवरात्रि का महत्व (Maha Shivratri​ Importance)

शिव भक्तों के लिए महाशिवरात्रि का दिन बेहद ही महत्वपूर्ण होता है। इस दिन वो शंकर भगवान के लिए व्रत रख खास पूजा-अर्चना करते हैं। वहीं, महिलाओं के लिए महाशिवरात्रि का व्रत बेहद ही फलदायी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से अविवाहित महिलाओं की शादी जल्दी होती है। वहीं, विवाहित महिलाएं अपने पति के सुखी जीवन के लिए महाशिवरात्रि का व्रत रखती हैं।

शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर (Shivratri or Maha Shivratri)

साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को सिर्फ शिवरात्रि कहा जाता है। लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाले शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। इसे कुछ लोग सबसे बड़ी शिवरात्रि के नाम से भी जानते हैं।

महाशिवरात्रि की कथा(Maha Shivratri Katha)

महाशिवरात्रि को लेकर एक या दो नहीं बल्कि हिंदू पुराणों में दो कथाएं प्रचलित हैं:-

शिकारी कथा

एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती को सबसे सरल व्रत-पूजन का उदाहरण देते हुए एक शिकारी की कथा सुनाई। इस कथा के अनुसार चित्रभानु नाम का एक शिकारी था, वो पशुओं की हत्या कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। उस पर एक साहूकार का ऋण था, जिसे समय पर ना चुकाने की वजह से एक दिन साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया था। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिवमठ में शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना और कथा सनाई जा रही थी, जिसे वो बंदी शिकारी भी सुन रहा था। शाम होते ही वो साहूकार शिकारी के पास आया और ऋण चुकाने की बात करने लगा। इस पर शिकारी ने साहूकार से कर्ज चुकाने की बात कही।

अगले दिन शिकारी फिर शिकार पर निकला। इस बीच उसे बेल का पेड़ दिखा। रात से भूखा शिकारी बेल पत्थर तोड़ने का रास्ता बनाने लगा। इस दौरान उसे मालूम नहीं था कि पेड़ के नीचे शिवलिंग बना हुआ है जो बेल के पत्थरों से ढका हुआ था। शिकार के लिए बैठने की जगह बनाने के लिए वो टहनियां तोड़ने लगा, जो संयोगवश शिवलिंग पर जा गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।

इस दौरान उस पेड़ के पास से एक-एक कर तीन मृगी (हिरणी) गुज़रीं। पहली गर्भ से थी, जिसने शिकारी से कहा जैसे ही वह प्रसव करेगी खुद ही उसके समक्ष आ जाएगी। अभी मारकर वो एक नहीं बल्कि दो जानें लेगा। शिकारी मान गया। इसी तरह दूसरी मृग ने भी कहा कि वो अपने प्रिय को खोज रही है। जैसे ही उसके उसका प्रिय मिल जाएगा वो खुद ही शिकारी के पास आ जाएगी। इसी तरह तीसरी मृग भी अपने बच्चों के साथ जंगलों में आई। उसने भी शिकारी से उसे ना मारने को कहा। वो बोली कि अपने बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर वो वापस शिकारी के पास आ जाएगी।

इस तरह तीनों मृगी पर शिकारी को दया आई और उन्हें छोड़ दिया, लेकिन शिकारी को अपने बच्चों की याद आई कि वो भी उसकी प्रतिक्षा कर रहे हैं। तब उसके फैसला किया वो इस बार वो किसी पर दया नही करेगा। इस बार उसे मृग दिखा। जैसे ही शिकारी ने धनुष की प्रत्यंचा खींची मृग बोला – यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों और छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।

ये सब सुन शिकारी ने अपना धनुष छोड़ा और पूरी कहानी मृग को सनाई। पूरे दिन से भूखा, रात की शिव कथा और शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ाने के बाद शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद् शक्ति का वास हुआ। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके। लेकिन जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता और प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई।

शिकारी ने मृग के परिवार को न मारकर अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। इस घटना के बाद शिकारी और पूरे मृग परिवार को मोक्ष की प्राप्ति हुई।

कालकूल कथा

अमृत प्राप्त करने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ। लेकिन इस अमृत से पहले कालकूट नाम का विष भी सागर से निकला। ये विष इतना खतरनाक था कि इससे पूरा ब्रह्मांड नष्ट किया जा सकता था। लेकिन इसे सिर्फ भगवान शिव ही नष्ट कर सकते थे। तब भगवान शिव ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। इससे उनका कंठ (गला) नीला हो गया। इस घटना के बाद से भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा। मान्यता है कि भगवान शिव द्वारा विष पीकर पूरे संसार को इससे बचाने की इस घटना के उपलक्ष में ही महाशिवरात्रि मनाई जाती है।

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