शांति, सहअस्तित्व एवं मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता बुद्ध दर्शन
– अर्जुन राम मेघवाल, केंद्रीय राज्यमंत्री,
संसदीय कार्य तथा भारी उद्योग और लोक उद्यम राज्य मंत्री
एवं बीकानेर से लोकसभा सांसद।
26 मई 2021 को बुद्ध पूर्णिमा हैं। विश्व को मुक्ति का मार्ग और दुःखों से अंत की राह दिखाने वाले भगवान बुद्ध के अवतरण दिवस को बुद्ध पुर्णिमा के रूप मंे मनाया जाता है। इस दिन लगभग सारे संसार में भगवान बुद्ध और उनकी शिक्षाओं के बारे में चर्चाएं, वर्कशाॅप, सिम्पोजियम आयोजित किए जाते हैं और चिन्तन-मनन-मन्थन के द्वारा विद्वान लोग तार्किक विश्लेषण भी प्रस्तुत करते हुए इस बात की पुष्टि करतें हैं कि भगवान बुद्ध की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक है।
सिद्धार्थ ने राजसी वैभव को त्यागकर ज्ञानप्राप्ति का मार्ग अपनाया और बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया और बुद्ध कहलाए। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने ज्ञान को संसार में दुःखों से मुक्ति के लिए बांटा। बुद्ध ने सर्वप्रथम अपने 5 साथी भिख्खुओं को सारनाथ में प्रथम उपदेश दिया, जिसे ‘‘धर्म चक्र प्रवत्र्तन‘‘ कहा जाता है। बुद्ध ने धम्म-उपदेश दिया और पूरे संसार में फैलने का निर्देश दिया। अगले चरण में संघ की स्थापना की और 60 भिक्षु तैयार किए एवं उन्हें 10 दिशाओं में धम्म प्रचार-प्रसार के लिए भेजा।
बुद्ध ने बौद्ध दर्शन के मूल सिद्धांत के रूप में 4 आर्य सत्य की संकल्पना का प्रतिपादन किया, जो निम्न प्रकार हैंः-
1. दुःख: संसार में दुःख है,
2. समुदाय: दुःख का कारण है। दुःख का कारण तृष्णा है।
3. निरोध: दुःख के निवारण हैं,
4. मार्ग: निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग हैं।
बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं में कहा कि संसार में दुःख है और मनुष्य जीवनभर दुःखों की श्रृंखला में फसा रहता है। इस दुःख का कारण बुद्ध ने विषयों के प्रति तृष्णा को बताया और इसी तृष्णा के कारण मनुष्य जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त नहीं हो पाता। भगवान बुद्ध ने निरोध के माध्यम से दुःख निवारण की शिक्षा दी और दुःख निवारण के मार्ग के रूप में आष्टांगिक मार्ग का उपाय बताया एवं कहा कि आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करते हुए मनुष्य जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त कर सकता है। इन अष्टांगिक मार्ग को मध्यमप्रतिपदा कहा गया। आष्टांगिक मार्ग इस प्रकार हैः-
1. सम्यक दृष्टि: चार आर्य सत्य में विश्वास करना
2. सम्यक संकल्प: मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
3. सम्यक वाक: हानिकारक बातें और झूठ न बोलना
4. सम्यक कर्म: हानिकारक कर्म न करना
5. सम्यक जीविका: कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः हानिकारक व्यापार न करना
6. सम्यक प्रयास: अपने आप सुधरने की कोशिश करना
7. सम्यक स्मृति: स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
8. सम्यक समाधि: निर्वाण प्राप्त करना
बुद्ध ने इन अष्टांगिक मार्गों को प्रज्ञा, शील और समाधि के रूप में व्याख्यायित किया।
बुद्ध एक ऐसे अद्वितीय महापुरूष हुए, जिन्होंने साधना के सारे प्रयोग अपने शरीर पर किये और बोधिसत्व प्राप्त करके सारे संसार में ज्ञान का प्रसार किया। इसलिए बौद्ध धर्म का उदय भारत में हुआ, यह पनपा भी भारत मंे